मातृ दिवस 'सप्ताह बहुत ही धूम धाम से मनाया गया...

अभी कुछ दिनों पहले 'मातृ दिवस 'सप्ताह बहुत ही धूम धाम से मनाया गया...हालांकि ये परम्परा पूरी तरह से दूसरे देशो से अडॉप्ट की गयी है...फिर भी किसी भी माँ के लिए ये दिन गौरव प्रदान करने वाला है...माँ होना हीं एक स्त्री को गौरवान्वित करता है । मगर हमारे भारतीय संस्कृति में देखा जाए तो प्रतिदिन किसी 'मातृ दिवस'से कम नहीं...एक माँ का अपने बच्चों से क्या सम्बन्ध है .. इसे कभी कभी बच्चे भी नहीं समझ पाते। लेकिन माँ उनकी हर ईच्छा अनिच्छा को उनके बिना कहे हीं समझ जाती है,शायद इस कारण कि उनका उनसे परिचय उनके दुनिया में आने के ९ महीने पहले हो चुका रहता है .. और वो उसी दिन से सिर्फ उनके लिए जीना सीख लेती है...
और शायद वो एक पल होता है कि एक स्त्री सिर्फ माँ बनकर रह जाती है..वो ये भूल जाती है कि उसका अपना भी कोई अस्तित्व है जिसके बारे में सोचने के लिए उसे समय नहीं...उसकी जिम्मेदारियों का कहीं अंत नहीं होता ।समय गुजर जाता है...बच्चे बड़े हो जाते हैं...उनके पंखों में उड़ान आ जाती है,और एक दिन वो अपने कार्य के सिलसिले में बाहर चले जाते हैं.....और माँ ?...और माँ हमेशा कि तरह उसी जगह पर ठहरी हुई उनकी खुशियो कि दुआएँ मांगती रहती है,हमेशा कि तरह बिना कोई उम्मीद किए ...ये है माँ ।मै बदनसीब हूँ कि आज मेरे पास मेरी माँ नहीं है जो हमेशा मेरी जिन्दगी की कठिन राहों पर मुझे रास्ता दिखाती रहीं,इस कर्ज को कोई भी संतान कभी नही चुका सकता ।मै भी एक माँ हूँ ,और आज महसूस करती हूँ उन सारी बातों को जो कभी सुनने में नागवार गुजरती थी ।दुनिया कि हर एक माँ को मेरा सलाम । 
'रश्मि अभय'