राम की शक्ति पूजा ------------



मेरी पसंदीदा कविताओं में से एक है- महाप्राण निराला रचित-"राम की शक्ति पूजा ।"यह सन् 1936 की रचना है जिस पर  बांग्ला के "कृतिवास रामायण" का प्रभाव देखा जाता है।312पंक्तियों की एक लम्बी कविता है।इसमें निराला ने युगीन-चेतना व आत्मसंघर्ष का मनोवैज्ञानिक धरातल पर बडा ही प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत किया है ।महाकाव्यात्मक औदात्य से परिपूर्ण यह लम्बी कविता प्रतीकात्मक है।शक्ति की मौलिक कल्पना इसकी मुख्य संकल्पना है। शक्ति केन्द्र है।
बंगाल के महिषादल में जन्मे निराला वहां की संस्कृति से बहुत प्रभावित हुए। कोमल कल्पना, शक्ति की आराधना उन्हें बंगाल से मिली। संघर्ष ने निराला को प्रखर, जिद्दी भी बना दिया ।निराला ने जीवन से कविता की यात्रा की है ।इसीलिए उनकी रचनाओं में जीवन की प्राथमिकता के दस्तावेज मिलते हैं।  छल ,प्रपंच ,दोगलापन उन्हें छू तक नहीं सका। निराला जैसा कभी विश्व में विरले ही मिलेंगे।
निराला ने तुलसी को अपना आदर्श माना।आराध्य के रूप में स्वीकारते थे।।
गुलाम देश को बंधन मुक्त करने की तीव्र आकांक्षा निराला में थी।निराला ने भारतीय सांस्कृतिक उन्नयन के लिए इतिहास के विभिन्न अध्यायों में से मोतियों को चुना था।देश के जागरण काल में  जब राजनेता ,साहित्यकार सुप्त जनता को जगा रहे थे तो निराला भी शामिल हो गये।निराला के भी ओजस्वी वाणी से जनता जागरूक होने लगी। निराला मुक्ति संग्राम युगीन कवि हैं ।उनकी कविताओं में मुक्ति-चेतना का स्वर प्रबल है।निराला स्वतंत्रता के दो रूप मानते हैं-बाह्य और अंतः। 
राम के संघर्ष के बहाने कविवर निराला का संघर्ष उनकी कविताओं में भी बिंबित होता है  निराला की 'राम की शक्ति पूजा' एक प्रतीकात्मक कविता है। औपनिवेशिक शक्ति को चुनौती देने वाली कविता है। मुक्ति संग्राम की कविता है ।निराला ने राम रावण युद्ध को आधुनिक संदर्भ में देखा है ।इनके राम न तो  दशरथ पुत्र हैं और ना ही कोई अवतारी पुरुष हैं । वह एक मर्यादा पुरुष हैं जो अत्यंत संशयग्रस्त, निराश और निरुपाय हैं ।वह निराशा और हताशा की स्थिति में  भी  टूटते नहीं दिखते बल्कि दुबारा उत्साह से भर उठते हैं और लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं। राम की शक्ति पूजा एक कालजई रचना है। यह युद्ध नीति- अनीति, न्याय- अन्याय ,सदाचार -अत्याचार ,सत -असत का युद्ध है। इस युद्ध में विजय की प्राप्ति हेतु शक्ति की पूजा होती । 
इस रचना के माध्यम से निराला ने संघर्षरत मानवता के लिए उदात्त  संदेश दिया है। शोषित, पीड़ित मानवता को समतुल्य शक्ति का संचयन कर अन्याय,  अत्याचार एवं उत्पीड़न का डटकर मुकाबला करने की अमर प्रेरणा दी है। जब राम हताश होते हैं तो विभीषण के माध्यम से निराला कहते हैं-
रघुकुल गौरव लघु हुए जा रहे तुम इस क्षण,
तुम फेर रहे हो पीठ,हो रहा जब जय रण।
×                  ×                               ×
तुम खींच रहे हो हस्त,जानकी से निर्दय।"
कवि ने राम के रूप में देशवासियों को स्वतंत्रता संग्राम एवं देश के लिए निर्माण कार्यों से किसी भी रूप में पलायन न करने की प्रेरणा  दी। शत्रु हमारी निरीहता  का उपहास उड़ाए, उपेक्षित करें, अपमानित करें और अपनी विजय के गीत गाए, यह संभव नहीं ।राम अंतश्चेतना में निहारते हैं।स्वयं शक्ति रावण के पक्ष में हैं।सीता की प्राप्ति  में बाधक।जय-पराजय शक्ति पर आधारित है।वह निराश बैठ जाते हैं ।जाम्बवान उन्हें समझाते हैं ।शक्ति संचय करने और उपयोग करने का विधान बताते हैं -


हे पुरूष सिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण।
×                      ×                             ×
आराधन का दृढ आराधन से दो उत्तर,
तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर ।"


भारत की परतंत्रता  के समय यह संदेश प्रेरणा का स्रोत रहा ।राम की शक्ति पूजा की सर्जना देश की पराधीनता के समय हुई गहन अवसाद और निराशा का युग था। विदेशी दमन चक्र अनवरत भारतीयों को किंकर्तव्यविमूढ़ कर रहा था ।रावण की अशोक वाटिका में बंदिनी सीता को अंतश्चेतना में पराधीन भारत माता मानकर ही चित्रित किया गया है ।रावण अनेकों प्रकार की नीतियों, क्रूरता, अत्याचारों से पूर्ण अंग्रेजी शासन का प्रतीक है। राम को देश की स्वतंत्रता ,राष्ट्रीयता, अत्याचार के विरुद्ध संघर्षरत भारतीय मानस के रूप में चित्रित किया गया है।
निराला ने शक्ति की करो मौलिक कल्पना को महत्त्व दिया। शक्ति  आयातित नहीं होती बल्कि वह हमारे भीतर ही निहित होती है ।बस उसे पहचानने की आवश्यकता है।
स्वतंत्रता- संग्राम में लीन अग्रणी नेताओं और निराला के जीवन में  आशा- निराशा का द्वंद्व चलता रहता है।उसकी प्रतिच्छवि इस काव्य में राम को माध्यम बनाकर दिखाया गया है। राम की ही तरह है निराला भी पूर्ण ईमानदारी, सजगता, सचेष्ट होकर अपनी  विषम परिस्थितियों के साथ द्वन्द्वमय  संघर्ष करते रहे हैं फिर भी विजय उनकी नहीं  विपरीत शक्तियों की हुई।यह संघर्ष राम का ही नहीं, मध्यवर्गीय मानवता का ही नहीं बल्कि निराला का भी संघर्ष है  ।
          निराला ने राम के माध्यम से दिखाया है कि सत्य,न्याय ,नैतिकता, सदाचरण के साथ पुरुषार्थ  का होना भी परम आवश्यक है। राम का अपराजय आदर्श हमें प्रेरणा देता है कि अडिग शक्ति और अदैन्य भाव से  संघर्ष करने वाला व्यक्ति अंत में विजय प्राप्त करता है। राम ने जब अपने राजीवनयन को अर्पण करने का निश्चय किया तो  ही शक्ति उनको प्राप्त हुईं ।भगवती ने रावण का साथ छोड़ा और राम के शरीर में लीन हो गयीं,  फिर राम की विजय हुई। राम ने आसुरी शक्तियों पर अपने पुरुषार्थ से विजय प्राप्त की।
 धर्म और अधर्म का यह संघर्ष 1936 ईस्वी के भारत में उतनी ही भीषणता से विद्यमान थी जितना राम- रावण की पौराणिक कथा में है। इस दौर में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद 'अधर्म' के प्रतीक थे और भारत राष्ट्र द्वारा अपने स्वाधीनता की मांग 'धर्म 'के प्रतीक। भारत ने  साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष किया और अपनी अस्मिता, स्वतंत्रता की तलाश की। राम -रावण का संघर्ष दो व्यक्तियों का संघर्ष नहीं बल्कि रामत्व और रावणत्व का संघर्ष है ।रामत्व से आशय उन गुणों से है जो हर युग में धर्म और सत्य के पक्ष में खड़े रहते हैं जबकि रावणत्व से आशय उन गुणों से है जो हर देश काल में असत्य ,अधर्म के साथ दिखाई पड़ता है। राम की शक्ति पूजा की मुख्य समस्या यह है कि अन्याय जिधर है शक्ति उधर है। शक्ति का अन्यायी रावण के पक्ष में होना समस्या है। निराला के व्यक्तिगत परिवेश में भी शक्ति अन्याय के पक्ष में है। वह अन्याय मुख्य आर्थिक क्षेत्र में है। यही निराला के जीवन का मूलभूत संघर्ष है ।राम की शक्ति पूजा में हताश- निराश निराला राम बनकर पुनः  विजयी हुए हैं ।
         आज का समय भी वैसा ही प्रतीत होता है ।विषम परिस्थितियों का शिकार समय ।अन्याय जिधर है उधर शक्ति  है ।कट्टरअंध शक्तियां अपने विकराल रूप में है और सदाचारी शक्तियां निराश और बेबस।
                        ✍इन्दु श्री