मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम प्रभु हमारे आदर्श— डॉ सरिता शुक्ला


भारतीय संस्कृति के आदर्शों को व्यावहारिक जीवन में मूर्तिमान करने वाले चौबीस अथवा दस अवतारों की श्रृंखला में भगवान राम का विशिष्ट स्थान है। उन्हें भारतीय धर्म के आकाश में चमकने वाला सूर्य और चंद्र कहा जा सकता है। उन्होंने व्यक्ति और समाज के उत्कृष्ट स्वरूप को अक्षुण्ण रखने एवं विकसित करने के लिए क्या करना चाहिए, इसे अपने पुण्य-चरित्रों द्वारा जन साधारण के सामने प्रस्तुत किया है। ठोस शिक्षा की पद्धति भी यही है कि जो कहना हो, जो सिखाना हो, जो करना हो, उसे वाणी से कम और अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने वाले आत्म-चरित्र द्वारा अधिक व्यक्त किया जाय। वैसे सभी अवतारों के अवतरण का प्रयोजन यही रहा है, पर भगवान राम ने उसे अपने दिव्य चरित्रों द्वारा और भी अधिक स्पष्ट एवं प्रखर रूप में बहुमुखी धाराओं सहित प्रस्तुत किया है। श्रीरामचरितमानस’ में इसके प्रमाण स्वरूप अनेक प्रसंग उपलब्ध हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं, जिन्होंने त्रेता युग में रावण का संहार करने के लिए धरती पर अवतार लिया। कौशल्या नंदन प्रभु श्री राम अपने भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न से एक समान प्रेम करते थे। उन्होंने माता कैकेयी की चौदह वर्ष वनवास की इच्छा को सहर्ष स्वीकार करते हुए पिता के दिए वचन को निभाया। उन्होंने ‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाय’ का पालन किया।भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन्होंने कभी भी कहीं भी जीवन में मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया है।माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए वह ‘क्यों’ शब्द कभी मुख पर नहीं लाए। वह एक आदर्श पुत्र, शिष्य, भाई, पति, पिता,मित्र और राजा बने, जिनके राज्य में प्रजा सुख-समृद्धि से परिपूर्ण थी।
केवट की ओर से गंगा पार करवाने पर भगवान ने उसे भवसागर से ही पार लगा दिया। भगवान राम सद्गुणों के भंडार हैं इसीलिए” हम उनके जीवन को अपना आदर्श मानते हैं”।सर्वगुण सम्पन्न भगवान श्री राम असामान्य होते हुए भी आम ही बने रहे। युवराज बनने पर उनके चेहरे पर खुशी नहीं थी और वन जाते हुए भी उनके चेहरे पर कोई उदासी नहीं थी। वह चाहते तो एक बाण से ही समस्त सागर सुखा सकते थे लेकिन उन्होंने लोक-कल्याण को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए विनय भाव से समुद्र से मार्ग देने की विनती की। शबरी के भक्ति भाव से प्रसन्न होकर उसे ‘नवधा भक्ति’ प्रदान की।  वर्तमान युग में  मानव भगवान राम के आदर्शों को जीवन में अपना कर  प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पा सकता है।भगवान राम के आदर्श विश्वभर के लिए प्रेरणास्रोत हैं।एवं 
प्रभु राम का पवित्र और आदर्श जीवन यही प्रेरणा देता है कि हम उनकी मर्यादाओं का पालन करते हुए अपने जीवन, अपने परिवार और अपने देश को सुखी और शांतिमय बनाएं।
अब हमें विचार करना है कि हम कहां तक मर्यादा पुरुषोत्तम राम की मर्यादाओं तथा उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास कर रहे हैं।  भगवान राम ने जो आदर्श और मर्यादा पुरुषोत्तम होने के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं उन आदर्शों को अपनाए बिना हम राम राज्य की कल्पना भी नहीं कर सकते।अतः हमें प्रभु श्रीराम की तरह आदर्शवादी कर्तव्यपरायण एवं धर्मनिष्ठ होना चाहिए............।इसे मंगल कामना के साथ...........।।
डॉ सरिता शुक्ला 
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)