करोना का क़हर
हर उपाय बेअसर
सच है कि करोना ऐसी महामारी के रूप में दुनिया में आया है कि पूरा संसार हिल गया है । कोई ऐसी जगह नहीं जहां इस ने तबाही नहीं मचाई । अब तक सुनते आए थे कि क़यामत आएगी , प्रलय आएगी , तो क्या इस की शुरुआत हो चुकी है?
कुछ प्रश्न अनुत्तरित हैं ।किसी के पास इनके उत्तर नहीं हैं । ना जाने वो सुबह कब आएगी जब ज़िंदगी पुनः अपने पुराने रूप में मुस्कुराएगी। ख़ैर , उम्मीद पे दुनिया क़ायम है। यह कठिन समय भी गुज़र जाएगा।
इस विषम परिस्थिति में हम यह नहीं कह सकते कि समाज का कोई एक वर्ग ही प्रभावित हुआ है । चाहे निम्न वर्ग हो , चाहे मध्यम या उच्च वर्ग , सभी पर इस लाइलाज बीमारी ने गाज गिरायी है ।
छोटे व्यवसाय पूरी तरह से बर्बादी के कगार पर हैं । बड़े व्यवसायों की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है ।हाँ , उन्हें बस ये तसल्ली है की कुछ समय तक वो अपना जीवन यापन ठीक से कर पाने के क़ाबिल हैं ।निम्न वर्ग जिन में कारीगर , श्रमिक , घरेलू नौकर - नौकरानियाँ , समाज का वो वर्ग है जो रोज़ कमाता , रोज़ खाता है । किंतु सरकार के प्रयासों से व भामाशाहों के दान से ऐसे वर्ग को दो समय का भरपेट भोजन उपलब्ध करवाया जा रहा है । इस में भी कुछ ऐसे निकृष्ट लोग है जो मुफ़्त में मिलने वाले दान से अपने घर में राशन जमा कर रहे हैं जिस से कुछ लोगों तक मदद पहुँच ही नहीं पा रही ।
कटु सत्य है कि इंसान की फ़ितरत ही कुछ ऐसी है वो चिता की आग में भी रोटी सेंक लेता है । उसे यह परवाह ही नहीं की औरों की भी सोच ले । ख़ैर , यह सबको समझाना आसान नहीं है ।
अब बात करते हैं हमेशा से सबसे ज़्यादा प्रताड़ित वर्ग यानि मध्यम वर्ग की । आज इस करोना का क़हर जो इस वर्ग पर टूटा है, उस का वर्णन करना कठिन है । यह वो वर्ग है जो किसी के भी आगे मदद के लिए भीख नहीं माँग सकता । इस वर्ग में नौकरीपेशा कर्मचारी अधिक आते हैं । ऐसे मध्यमवर्गीय लोग दोहरी मार झेल रहे हैं । ना तो वो किसी से आर्थिक मदद की अपेक्षा कर सकते हैं ना ही अपने ज़रूरी खर्चे चाह के भी कम कर सकते हैं ।इन्हें सरकारी आदेशों की अनुपालना के तहत जान जोखिम में डाल के नौकरी भी करनी है और अपनी सहायता के लिए किसी से कोई उम्मीद भी नहीं करनी है ।इनके वेतन का कुछ भाग इनकी आय के हिसाब से स्थगित हो गया है जो क्रमशः ३०/४०/५०/६० प्रतिशत है । अपनी आय में से स्वैच्छिक रूप से पिछले माह के वेतन में से यह वर्ग करोना फंड में दान दे चुका है। स्थगित की हुई राशि कब मिलेगी , कुछ पता नहीं ।सरकार ने कुछ भत्तों पर भी रोक लगा दी है।अब बताइए यह वर्ग कहाँ से अपने खर्चे पूरे करे ? घर का राशन , दवाइयाँ, गैस, घर के बुजुर्गों की देखभाल , बच्चों की स्कूल फ़ीस , बिजली पानी के बिल , बच्चों की टूइशन का खर्च , घरेलू नौकरों की पगार ,ये सब कहाँ से होगा ।सरकार कहती है निम्न वर्ग पे दया रखो।कोई भी अपने घर, दुकान , फ़ैक्टरी आदि पर काम करने वालों की तनख़्वाह मत काटो।अरे, जब आय ही नहीं होगी तो व्यय कहाँ से करें ? सच है कथनी और करनी में बहुत अंतर होता है । बंद कमरों में लिए जाने वाले निर्णय और ज़मीन से जुड़ी वास्तविकता में बहुत अंतर होता है ।समाज का यही वर्ग ऐसा है जो बैंक से ज़्यादा लोन लेता है , कभी वाहन के लिए , कभी मकान के लिए , कभी बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए तो कभी उनके विवाह के लिए । बैंक की किस्त कहाँ से चुका पाएगा यह वर्ग ? सरकार टैक्स में कोई रियायत नहीं दे रही । ऐसी विषम परिस्थिति में अनेक बिल भरना और टैक्स देना क्या सम्भव हो पाएगा ?
ये कुछ ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं जिनके उत्तर मिलना बहुत ज़रूरी है ।
कर्मचारियों की तनख़्वाह काटना , उनके भत्ते रोकना , करोना से लड़ने के हथियार नहीं हैं । कहीं ऐसा ना हो जाए कि इस वर्ग के लोग करोना से पहले अवसाद से मरने लग जाएँ ।
मेरी सरकारी तंत्र से यह अपील है कि कोई भी कठोर निर्णय लेने से पूर्व उस से होने वाले दुष्परिणामों पर चिंतन अवश्य कर लें ।
नीता टंडन