वर्तमान परिदृश्य को देखकर मन अकुला उठा है हर जन का
चारों ओर भय व्याप्त है,दूर-दूर तक सन्नाटा,तरस गयी हैं आंखे एक दूसरे को देखने के लिये,सुना था सन्नाटा छा गया अब मह्सूस हुआ कैसी अनुभूति होती होगी,ईश्वर ने संसार रचते वक्त सभी को एक बनाया।अपनी सुविधानुसार मानव ने विभाजित कर लिया अलग -अलग।उच्च,मध्य,निम्न श्रेणी में दायरे तय हो गये।पर कहां सृष्टि कर्ता ने तो सभी को एक ही सांचे में ढाला था।धीरे-धीरे हम बड़ते गये,बँटते गये,हर आने वाले कहर से अंजान।अपनी संस्क्रति,धर्म ,आस्थाओं का चीरहरण करते हुए कभी पद के गुरुर में,कभी कद के गुरुर में,इंसाँ को इंसान न समझने की हर पल भूल करते हुए।एकता तो जैसे सपना सा हो गया था,हमने विस्म्रत कर दिया था उन संस्कारों को जो हमारी ताकत थे,कहां दिखती थी वो पूजा की थाली,वो शंख,वो घंटी,वो कुरान,वो बाईबल,वो रामायण वो गीता उन सबकी जगह शोभित होने लगा भौतिकता का माया जाल।क्यूं ऐसा नहींं हो सकता कि हर दिन एक रहा होता,आज जो कोरोना महामारी ने जो विकराल रुप ले लिया उसके लिये एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं हम,कभी धर्म के नाम पर,कभी जाति-पाति के नाम पर।कुछ न समझ लोगों की वजह से ये हालत बने हैं आज••••क्या कोई बात पायेगा?कि जब वो ऊपर वाला रचना करता है वो माथे पर मजहब लिखता है नहींं,फिर क्यूं नहींं समझते हम।हमारा भारत देश जहां कल-कल करती नदियां,चहचाते पक्षी,मधुर स्वर सुनाते झरने,वो अपनापन,वो दीवाली,वो होली,वो ईद,वो एक दूसरे के साथ कदम मिलाकर चलना,जहां गीता होती है,जहां मन्त्रों की ध्वनि गूँजती रह्ती है,जहां अजान सुनायी देती है,आज सन्नाटा व्याप्त है किसे कहे इसका जिम्मेदार।आज न अजान है,न मन्त्रों की ध्वनि।सिमट गयी है जिन्दगी,लगता है न जाने कल का सबेरा कैसा होगा।जिन्दगी का वो सुहाना मंजर खो सा गया है,दोस्तों से बातें,अपनो की खैरियत पूछना,किसी से मिलना,किसी को देखना सब स्वपन सा लगता है।आज भी अगर हम थम जायें समझ जायें तो फिर से वही खुशहाली लौट आयेगी।कहां जब आंख खुली तो मह्सूस हुआ सपना है क्या नहींं हम इसे सच कर सकते हैं।आज के हालात किसी एक धर्म को प्रभावित नहींं कर रहे,आप ,हम सभी ग्रसित हैं।मह्सूस होता है कैद क्यूं रास नही आती।आज भोर होते न चिड़िया की आवाज सुनायी देती है,न वो चहल पहल।चारों ओर सिर्फ मातम सा आलम हैं,सांसे हैं पर बताओ जिन्दगी कहां??? गंगा,यमुना,सरस्वती की पावन स्थली,जहां मक्का मदीना जैसे पावन स्थल बसते हैं ••••ऐसे देश को मत बांटने की ठानो।कट्टर न बनो••• बनना है तो आस्था के पुजारी बनो,गले लगाओ,एक होकर हालातों का सामना करो।देखना कैसे फिर से धरती मुस्करायेगी••• तेरे मेरे जीवन की बगिया फिर से खिल जायेगी।
प्रतिभा शर्मा