आत्मनिर्माण

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मानव को निम्न आदतें छोड़ देनी चाहिएं - निराशावादिता, कुढ़न, क्रोध, चुगली और ईर्ष्या। इनका आन्तरिक विष मनुष्य को कभी भी पनपने नहीं देता, समाज में निरादर होता है, आन्तरिक विद्वेष से मनुष्य निरन्तर दग्ध होता रहता है। बात को टालने की एक ऐसी गन्दी आदत है जिससे अनेक व्यक्ति अपना सब कुछ खो बैठे हैं। इनके स्थान पर सहानुभूति, आशावाद, प्रेम, सहनशीलता, संयम की आदतें लोक एवं परलोक दोनों में मनुष्य को सन्तुष्ट रखती हैं। यदि हम आत्मनिर्माण में अपना समय लगायें, तो हमारा जीवन बहुत ऊँचा उठ सकता है।


हे अमर आत्माओं। जीवन का, उच्च सात्विक और कलात्मक जीवन का निर्माण कीजिए,अपना मानसिक स्तर ऊँचा उठाईये,मानसिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए स्वाध्याय कीजिए, अधिक से अधिक ज्ञान संचय कीजिए,आत्मोन्नति एवं आत्मतुष्टि के लिए नियमित रीति से आध्यात्मिक ग्रन्थों का पठन-पाठन, अध्ययन, मनन, विद्वानों के सत्संग, भाषण सुनना एक चिर साधना है जिनसे लोग श्रद्धालु होते हैं, संसृति का निर्माण होता है। प्रत्येक व्यक्ति के पास स्वभाव-निर्माण, चरित्र-निर्माण, सुखी जीवन-निर्माण के लिए विस्तृत कार्य क्षेत्र काम करने के लिए खाली पड़ा है।


अपने भविष्य का निर्माण स्वयं आपके हाथ में है। आज के कार्यों द्वारा आपका भविष्य निर्माण होना है। आप आज जो परिश्रम, और उद्योग कर रहे हैं, उन्हीं के बल पर भविष्य का निर्माण हो सकेगा।


समाज निर्माण कीजिए। आपके समाज में विस्तृत कार्य क्षेत्र हैं जिसमें आपके योग की आवश्यकता है। आपके समाज में इस उन्नत युग में अनमेल विवाह, बाल-विवाह, बहु-विवाह, छूत-अछूत, मजदूर और पूँजीपति, किसान और जमींदार, कृषि की उन्नति, समाज से अशिक्षा को दूर करने की असंख्य छोटी बड़ी अनेक समस्याएं फैली हुई हैं। अपनी जीविका के उपार्जन के पश्चात आप इनमें से कोई भी क्षेत्र छाँट सकते हैं।जो आपको उचित लगे......।इस प्रकार मानव का जीवन सुखमय हो जाएगा........।इसी मनोकामना एवं विश्वास के साथ.......।।
डॉ सरिता शुक्ला 
लखनऊ