नसबंदी आदेश जारी करने, वापस लेने वाली कमलनाथ सरकार की राष्ट्रीय स्तर पर थू थू

भोपाल। स्वास्थ विभाग का एक आदेश महाशिवरात्रि के दिन कमलनाथ सरकार के  लिए महाकाल बनकर आया। इस तुगलकी और सनकी आदेश की खबर जब प्रदेश और देश के मीडिया पत्रकारों को लगी, तो सब छोटे बड़े पत्रकार बुरी तरह से कमलनाथ सरकार पर पिल पड़े। दिल्ली और मुम्बई के बड़े चैनलों ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मध्यप्रदेश की संचालक छवि भारद्वाज के पुरुष नसबंदी के बारे मे दिए आदेश पर दिन भर चैनलों पर खबर को चलाया और कमलनाथ को इंदिराजी के पुत्र संजय गांधी के इमरजेंसी युग की मध्यप्रदेश में  शुरआत होना बताया। दरअसल राष्ट्रीय स्वास्थ मिशन की राज्य संचालक व आईएएस अफसर छवि भारद्वाज ने नसबंदी के लक्ष्य की समीक्षा के दौरान यह पाया कि कई स्वास्थ कर्मचारी पुरुष नसबंदी के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रहे है। इस पर मिशन की संचालक छवि भारद्वाज ने जिलो के सभीकलेक्टरों,कमिश्नर और सीएमएचओ को यह आदेश जारी कर दिया कि वे एमसीडब्ल्यू को 5 से 10 पुरुषो की नसबंदी के लिए तैयार करे। टारगेट पूरा न होने पर ‘‘नो वर्क-नो पे’’ के आधार पर उनका वेतन रोके और 20 फरवरी तक स्थिति मे सुधार नहीं हुआ तो उन्हे अनिवार्य सेवा निवृत्ति दे दी जाए। जब इस तानाशाही भरे आदेश पर बवाल हुआ तो महाशिवरात्री का अवकाश  होने के बावजूद ऑफिस खुलवाकर न केवल उक्त आदेश वापस लिया गया बल्कि छवि भारद्वाज को हटाकर  मंत्रालय मे ओएसडी बन दिया। छवि भारद्वाज के इस तुगलकी कदम से न केवल कमलनाथ सरकार की किरकिरी हुई अपितु विपक्ष को भी सरकार पर थू–थू करने का मौका मिल गया। यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि पिछले दिनो ही सरकार ने अपने मंत्रियों को यह हिदायत दी है, कि भाजपा काल मे मंत्रियों के स्टाफ मे रहे कर्मचारियो को अपने यहां न रखे क्योंकि उनकी मानसिकता भाजपाई हो गई है। अगर सरकार के इस तर्क को सही मान लिया जाए तो क्या नोकरशाहों मे ऐसी मानसिकता वाले अफसर नहीं है? उन पर भी अंकुश लगाया जाना चाहिए। सवाल यह भी उठता है कि थप्पड़ कांड से जुड़ी राजगढ़ कलेक्टर निधि निवेदिता और एसडीएम वर्मा जैसी आईएएस महिलाएं कमलनाथ सरकार के चहेते अफसरों की सूची मे क्यो है ? इस पूरे मामले मे 'कोढ़ मे खाज़' वाली स्थिति तब बनी, जब सरकार के प्रचार भोंपू जनसम्पर्क संचालनालय के आला अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और राष्ट्रीय न्यूज चैनलों पर कमलनाथ की थू थू होती रही। अगर इसी तरह सरकारी स्तर पर "डेमेज कंट्रोल" की स्थितिया आगे भी बनती रही तो "वक्त है बदलाव का" नारा देने वाले कमलनाथ को बदलने मे जनता नहीं हिचकिचाएगी।