भाजपा को अपनी राजनीति की दशा और दिशा पर नए सिरे से सोचना शुरू करना होगा

दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकने के बाद भी करारी हार का मजा चखने वाली भाजपा को अब गहरे आत्म मंथन की जरूरत है।


भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव जिस एग्रेसिव तरीके से लड़कर कॉंग्रेस को सत्ता से बाहर किया ।वो ही तरीका 2019 में भी भाजपा ने अपनाया और भारी बहुमत से केंद्र में अपनी सत्ता काबिज की। भाजपा को लगने लगा कि उसने दो चुनाव इस तरह से जीत लिए तो वो ही फार्मूला हर चुनाव में वो फिट करके बार बार चुनाव जीत सकती है। उसकी ये ही गलती आज उसपर भारी पड़ रही है।राज्यो में होने वाले चुनाव में आप ना तो राष्ट्रवाद को मुद्दा बना सकते हो न ही अपने पड़ोसी मुल्क की हरकतों का बार बार जिक्र करके जनता की बुनियादी समस्याओं से ध्यान हटा सकते हो।


विधानसभाओं के चुनाव राज्यो की जनता के लिए सीधे तौर पर स्वास्थ, शिक्षा, सड़क, पानी,बिजली कानून और व्यवस्था से सरोकार रखते है।


दिल्ली के चुनाव हो या गत माह पूर्व झारखंड के इन दोनों राज्यो में भाजपा के खिलाफ विकास की राजनीति को विपक्ष ने मुद्दा बनाया और अपेक्षा से अधिक सफलता पायी।


मगर भाजपा के नेताओ के पास चाहे केंद्र का चुनाव हो या राज्य का या कोई उपचुनाव भी हो तब भी उनके नेता हिन्दू मुस्लिम या फिर पाकिस्तान को लेकर इस तरह की भाषणबाजी करते है कि जनता को लगने लगता है कि ये अपनी नाकामियों पर पर्दा डाल रहे है।


दिल्ली के इस विधानसभा चुनाव में मोदी जी और अमित शाह या मनोज तिवारी या प्रवेश वर्मा के खिलाफ केजरीवाल और उसकी पार्टी के किसी नेता ने कोई हमला नही बोला जबकि भाजपा का हर नेता जो दिल्ली चुनाव में सक्रिय था खूब पानी पी पी कर केजरीवाल केजरीवाल पर हमले करता रहा और केजरीवाल ने पानी बिजली सड़क स्वास्थ की बात कर कर के दिल्ली के लोगो का दिल जीत लिया और भाजपाई नेता केजरीवाल और शाइन बाग पर ही अड़े रहे। नतीज़ा सामने है भाजपा को वो पटखनी मिली कि जिसका दर्द उसे पूरे पांच साल कांटे की तरह चुभता रहेगा।


भाजपा नेताओं को सोचना होगा बल्कि उनकी पार्टी में जो योगी, गिरिराज, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा मनोज तिवारी जैसे नेता है जिनके मन मे जो अनाप शनाप आता है बोलते है इन्हें चुनावो से दूर रखना होगा।